Tuesday, October 26, 2021

बटुआ

 फिर वही मंज़र , फिर वही शाम है ।

मैं , मेरी तन्हाई  और कुछ ख्याले- खास हैं ।

गज़ब कशमकश में फंसे हैं हम! 

पॉकट में है एक खाली बटुआ, जिसमें आने वाली ज़िन्दगी से जुड़े कुछ ख्वाब,

किनारे को तरस्ती एक नाव, कुछ बदतर से हालात और कटे- फटे से कुछ लिबास हैं ।